-अरुण कुमार जैमिनि-
एक दिन राजू ने कक्षा में साथ पढ़ने वाले श्याम की कॉपी छिपा दी। मास्टरजी को कॉपी न दिखा पाने के कारण उसकी पिटाई हो गई। राजू यह सब देखकर बहुत खुश हुआ। मास्टरजी के चले जाने के बाद उसने चुपचाप कॉपी श्याम के बस्ते में रख दी। श्याम ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया
राजू अस्पताल में बिस्तर पर लेटा हुआ, अपनी शरारतों के बारे में सोच-सोचकर शर्मिदा हो रहा था। उसने किस-किसको परेशान नहीं किया। चाहे पड़ोस में रहने वाली राधा चाची हों या फिर स्कूल में साथ पढ़ने वाले दोस्त या पड़ौस के मोहन काका। सभी उसकी शरारतों से परेशान थे। यही नहीं, किसी भी जानवर को पत्थर मारना, गाय-भैंस की पूंछ खींच कर उन्हें सताना उसका रोज का काम था। उसके माता-पिता ने उसे कई बार समझाया और डांटा भी। लेकिन उसकी गंदी आदतों में कोई सुधार नहीं हुआ। उसकी शरारतें पहले की तरह ही चलती रहीं। आज जब वह अपनी ही शरारत का शिकार होकर अस्पताल में बिस्तर पर लेटा हुआ था, तो उसे दूसरों की तकलीफों का ध्यान आ रहा था।
राजू फैजलपुर नाम के एक छोटे-से गांव में रहता था। घर में माता-पिता और एक छोटी बहन शीतल थी। राजू के पिता शहर में नौकरी करते थे। मां और छोटी बहन सारा दिन घर पर रहती थीं। बहन ने अभी स्कूल जाना शुरू नहीं किया था। राजू गांव के स्कूल में ही पांचवीं कक्षा में पढ़ता था। राजू पढ़ाई में होशियार था, लेकिन वह पढ़ने के साथ-साथ शरारतों में भी तेज था। स्कूल के अध्यापक कई बार उसकी शरारतों को इसलिए अनदेखा कर देते थे कि वह विद्यालय का सबसे होनहार छात्र था। राजू इसी बात का फायदा उठाता था। उसकी शरारतें दिन-पर-दिन बढ़ती ही जा रही थीं। यही नहीं, उसके घरवाले और पड़ोसी भी उसकी इन शरारतों का शिकार होते रहते थे। इससे उन्हें काफी परेशानी उठानी पड़ती थी। लेकिन राजू तो इन सबसे बेखबर था। दूसरों को परेशान देखकर उसे बहुत मजा आता था।
एक दिन उसने कक्षा में साथ पढ़ने वाले श्याम की कॉपी छिपा दी। मास्टरजी को कॉपी न दिखा पाने के कारण उसकी पिटाई हो गई। राजू यह सब देखकर बहुत खुश हुआ। मास्टरजी के चले जाने के बाद उसने चुपचाप कॉपी श्याम के बस्ते में रख दी। श्याम ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया। उसने जब राजू से ऐसा करने की वजह पूछी तो उसने कहा, मैंने तो मजाक किया था। जब मास्टरजी को यह पता चला तो उन्होंने राजू की पिटाई की। लेकिन इसके बावजूद राजू में कोई सुधार नहीं हुआ।
अपनी छोटी बहन शीतल को भी वह बिना बात सताता रहता था। मां जब पूछती तो कह देता कि यह शरारत कर रही थी। मां उसे डांटती तो वह खेल के बहाने वहां से उठकर चला जाता। इस तरह राजू की शरारतों से हर कोई परेशान था।
एक दिन राजू अपनी अलमारी में कुछ देख रहा था। उसने देखा कि अलमारी के नीचे वाले खाने में पटाखे का एक पैकेट रखा हुआ है। उसे याद आया कि यह पैकेट दिवाली के बचे हुए पटाखों का है। उसने पैकेट को हाथ में लिया। उसकी आंखें शरारत से चमकने लगीं। उसने मन-ही-मन एक योजना बनाई। अपनी इस योजना को पूरा करने के लिए वह रात का इंतजार करने लगा।
रात के समय राजू घर से पटाखे की लड़ी लेकर चुपचाप निकला। उसने पड़ोस के मोहन काका के घर की ओर रुख किया। मोहन काका अकेले ही रहते थे। राजू को वे अपने घर के बाहर कुछ काम करते दिखाई दिए। वह उनके पीछे चुपचाप गया और पटाखे की लड़ी जलाकर छोड़ दी। पटाखों की आवाज से मोहन काका डरकर भागे तो वह हंस-हंसकर ताली बजाते हुए पीछे की ओर भागा। तभी एक तेजी से आती हुई कार राजू को टक्कर मारकर निकल गई। राजू लहूलुहान होकर सड़क पर गिर गया। मोहन काका दौड़कर आए। उन्होंने देखा कि राजू बेहोश पड़ा है। उन्होंने उसे उठाया और लोगों की मदद से अस्पताल पहुंचाया। राजू के एक्सीडेंट की खबर सुन कर उसके माता-पिता घबराते हुए अस्पताल पहुंचे। डांक्टरों ने उन्हें ढांढस बंधाते हुए कहा कि अगर उनका बेटा समय पर अस्पताल नहीं पहुंचता तो अवश्य कोई अनहोनी घट जाती। अब सब सामान्य है।
थोड़ी देर में राजू को होश आ गया। होश आने पर जब उसे पता चला कि आज मोहन काका के कारण ही उसके प्राण बचे हैं, तो उसे अपने ऊपर बड़ी शर्म आई। वह सोचने लगा कि उसने मोहन काका को परेशान कर खूब मजा लिया। यह भी नहीं सोचा कि उसके पटाखों के मजाक से अगर उन्हें कुछ हो जाता तो क्या होता? लेकिन काका ने उसके इस बुरे बर्ताव के बावजूद अस्पताल पहुंचाकर उसकी जान बचाई। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। तभी उसके सिर पर किसी ने हाथ रखा। उसने देखा कि यह तो मोहन काका हैं। उसकी हिचकियां बंध गईं। काका ने उसे प्यार करते हुए कहा कि बेटा, वादा करो कि आज के बाद तुम किसी को तंग नहीं करोगे। राजू कुछ कह नहीं पाया और उनके सीने से लग गया।
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